Monday 26 February 2018

ऐ ज़िन्दगी कितनी तन्हा है तू ....

ऐ ज़िन्दगी... कितनी तन्हा है तू
थोड़ा तो रहम कर कितनी बेपरवाह है तू 

ये शहर खाली खाली से है
ये गांव बिखरे बिखरे से है
थोड़े से घांव थे जो मेरे कभी
वो अब कुछ निखरे निखरे से है

ऐ ज़िन्दगी इन जख्मो को नासूर न बना देना
हमें फिर से उनकी याद में मजबूर न बना देना
जिसकी मोहब्बत में लुटा दिए शहर मेने
ऐ ज़िन्दगी उसे तू मगरूर न बना देना 

ऐ ज़िन्दगी बस इतना रहम कर तू
थोड़ी सी तो परवाह कर ले ना तू
तेरे इंकार में तो बस दिल से आवाज आएगी
की ऐ ज़िन्दगीकितनी तन्हा  है तू


ऐ ज़िन्दगी... कितनी तन्हा है तू !!




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